लाल किताब- पृष्ठभूमी

भारत की धरती सदियों से ॠषियों मुनियों का निवास स्थान रही है। मैं उन्हें आज की भाषा में शोध वैज्ञानिक का नाम दे सकता हूँ। इन वैज्ञानिकों ने अपने शोध संस्थान आबादी से दूर या जंगलों में बनाये हुए थे और वहीं से उन्हों ने इंसानियत के हर संबंध से ताल्लुक़ रखने वाले लाखों शोध पत्र लिखे जिन्हें हम वेद, शास्त्र, उपनिषद, सम्हिता और बहुत से नाम दिये हैं। मुगलों, योरपियों व अन्य हमलावरों ने इन शोध पत्रों को बहुत नुकसान पहुंचाया तथा बहुत से शास्त्र या तो बरबाद हो गये या उन्हें कुछ हमलावर अपने साथ अपने मुल्कों मे ले गये।

दूर दराज के क्षेत्र जैसे हिमाचल हिमालय तथा दक्षिण के कुछ इलाके उन हमलावरों से बचे रहे तथा यहीं के कुछ शास्त्र अपनी मूल स्थिति में बचे रहे। इन्हीं हमलों की वजह से आम बोलचल की भाषा में भी तबदीली आ गई। उर्दू, फ़ारसी, इन्गलिश ने भी यहां अपनी जगह बना ली तथा बहुत से शब्द जो इन भाषाओं के थे, उन्होने हमारी बोलचाल की भाषा मे स्थाई रूप ले लिया।

ज्योतिष का मूल रूप आज के स्वरूप से भिन्न था। आज भी भारत के कई स्थानो मे उसी मूल रूप में प्रच्लित है। हम पायेंगे कि वहाँ ज्योतिष सूत्रों को छदं के रूप में कंठस्थ किया जाता है। बस लगन कुंडली देखी तथा कुंडली विवेचन सटीकता से बोलना शुरू कर दिया।

हमारे बाद के कुछ ॠषियों ने आम बोलचाल की भाष में कुछ ग्रंथो को लिखा तथा जन मानस में इन्हें पहुँचाया। जैसे तुलसी दास जी ने रामचरित मानस लिखी तथा इसे घर घर में जगह मिली।

 लालकिताब के बारे में यह तो नहीं मालूम कि यह किस ग्रंथ पर आधारित है। लेकिन पंजाब के एक महान आत्मा स्वर्गीय  पंडित रूप चंद जोशी जी ने ज्योतिष के इस अदभुत ग्रंथ को आम जन मानस की बोलचाल की भाषा में लिखा तथा पाँच संस्करण छपवाए:-

  1. लाल किताब के फ़रमान - सन 1939        

  2. लालकिताब के अरमान - सन 1940

  3. लाल किताब गुटका - सन 1941

  4. लालकिताब - सन 1942

  5. लालकिताब- सन 1952

पं: रूप चदं जोशी जी

 

इन किताबों की मूल भाषा उर्दू है जो उस समय की आम प्रचलित भाषा थी। पंडित जी ने इन्हें सामुद्रिक नाम दिया है। इन किताबों के बारे मे और जानकारी के लिये आप वैबसाईट http://www.originallalkitab.com में देख सकते हैं जो कि हमारे पूजनीय श्री राजिंदर भाटिया जी जिन्होने पंडित जी को बहुत करीब से देखा है तथा जिनका पंडित जी के परिवार से बहुत नज़दीकी ताल्लुक़ है तथा जिनके रग रग में लालकिताब बसी है, द्वारा संचालित की गयी है।

इस किताब पर बहुत कम शोध हुआ है क्यों कि इस की भाषा उर्दू होने की वजह से इसे कुछ ही लोग जो उर्दू जानते थे पढ पाए। इसी वजह से कई भ्रान्तियाँ इस किताब के साथ जुड गई जैसे यह किताब इस्लामिक तंत्र से जुड़ी हुई है, यह मूल रूप से मिस्र की किताब की नक़्ल है आदि। हिंदी में रूपान्तर: आप को यह को यह जान कर हैरानी होगी कि इस किताब के कई रूपांतर हिन्दी में उपलब्ध हैं जो कि मूलत: लाल किताब 1952 का रुपांतर हैं। इस किताब पर बहुत कम शोध हुआ है क्यों कि इस की भाषा उर्दू होने की वजह से इसे कुछ ही लोग जो उर्दू जानते थे पढ पाए। इसी वजह से कई भ्रान्तियाँ इस किताब के साथ जुड गई जैसे यह किताब इस्लामिक तंत्र से जुड़ी हुई है, यह मूल रूप से मिस्र की किताब की नक़्ल है आदि।

हिंदी में रूपान्तर: आप को यह को यह जान कर हैरानी होगी कि इस किताब के कई रूपांतर हिन्दी में उपलब्ध हैं जो कि मूलत: लाल किताब 1952 का रुपांतर हैं। सब से सही माने जाना वाला हिंदी संस्करण "लाल किताब के फरमान 1939 " पर आधारित प: बेणी प्रसाद गोस्वामी जी द्वारा सागर पब्लिकेशन, नई दिल्ली, से छ्पवाया गया है. चंडीगड़ (पंजाब) में अरुण प्रकाशन नें सभी किताबों का हिन्दी में रुपाँतर किया तथा इसे अरुण सँहिता लाल किताब के नाम से प्रकाशन किया। दिल्ली के कुछ प्रकाशकों ने भी लाल किताब को छापा है। मूलत: सभी किताबों में प्रिन्टिगं गल्तियाँ हैं जिस से असल बात का गल्त मतलब बन जाता है। लेकिन फिर भी इन किताबों ने लाल किताब को प्रचलित होने में मदद दी है। कुछ शोध कर्ताओं ने अपने शोध भी लिखे हैं जो अग्रेंज़ी तथा हिदीं में भी उपलब्ध हैं। अगर आप उर्दू नहीं जानते तो आप इन्हें पढ कर लालकिताब में अपनी रुची बढा पाएंगे, लेकिन बिना उर्दू जाने आप बात की तह मे न जा पाएंगे।

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